नज़र जिसको तरसती हैं वो चेहरा नहीं मिलता

नज़र जिसको तरसती हैं वो चेहरा नहीं मिलता
बुत मिलते हैं फिर कोई तुझ सा नहीं मिलता
किसे देखूं किसे चाहूँ किसे अपना समझूं 
जहाँ की इस भीड़ मैं कोई अपना नहीं मिलता

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