बड़ा बेचैन होता जा रहा हूं, न जाने क्यूं नहीं लिख पा रहा हूं
बड़ा बेचैन होता जा रहा हूं,
न जाने क्यूं नहीं लिख पा रहा हूं
तुम्हे ये भी लिखूं वो भी बताऊं,
मगर अल्फ़ाज़ ढूंढे जा रहा हूं
मोहब्बत का यही आ़गाज़ होगा,
जिधर देखूं तुम्ही को पा रहा हूं
कभी सूखी ज़मीं हस्ती थी मेरी,
ज़रा देखो मैं बरसा जा रहा हूं
किसी दिन इत्तेफ़ाकन ही मिलेंगे,
पुराने ख्वाब हैं दोहरा रहा हूं
मुझे आगोश में ले लो हवाओं,
गुलों से बोतलों में जा रहा हूं
शरारत का नया अंदाज़ होगा,
मैं शायद बेवजह घबरा रहा हूं
किसे परवाह है अब मंज़िलों की,
मोहब्बत के सफ़र पर जा रहा हूं
दिलों की नाज़ुकी समझे हैं कब वो,
दिमागों को मगर समझा रहा हूं
शब-ए-फ़ुरकत की बेबस हिचकियों से,
तसल्ली है कि मैं याद आ रहा हूं
मोहब्बत थी कहां हिस्से में ,
गज़ल से यूं ही दिल बहला रहा हूं..
न जाने क्यूं नहीं लिख पा रहा हूं
तुम्हे ये भी लिखूं वो भी बताऊं,
मगर अल्फ़ाज़ ढूंढे जा रहा हूं
मोहब्बत का यही आ़गाज़ होगा,
जिधर देखूं तुम्ही को पा रहा हूं
कभी सूखी ज़मीं हस्ती थी मेरी,
ज़रा देखो मैं बरसा जा रहा हूं
किसी दिन इत्तेफ़ाकन ही मिलेंगे,
पुराने ख्वाब हैं दोहरा रहा हूं
मुझे आगोश में ले लो हवाओं,
गुलों से बोतलों में जा रहा हूं
शरारत का नया अंदाज़ होगा,
मैं शायद बेवजह घबरा रहा हूं
किसे परवाह है अब मंज़िलों की,
मोहब्बत के सफ़र पर जा रहा हूं
दिलों की नाज़ुकी समझे हैं कब वो,
दिमागों को मगर समझा रहा हूं
शब-ए-फ़ुरकत की बेबस हिचकियों से,
तसल्ली है कि मैं याद आ रहा हूं
मोहब्बत थी कहां हिस्से में ,
गज़ल से यूं ही दिल बहला रहा हूं..
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